केजरीवाल : कमल का बटन मत दबाना, वोट भाजपा को जाएगा।

दिनांक :२६ अप्रैल २०१७

दिन : बुधवार

प्रिय जिंदगी, आज इस दैनिकी में मैं, मेरे और तुम्हारे बीच हुई एक और अनबन का किस्सा बयां कर रहा हूँ। जैसे कि तुम्हे पता ही होगा कि आज से कुछ हफ्ते पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल जी ने उत्तर प्रदेश चुनाव में कांग्रेस-सपा गठबंधन की और गोआ में उनकी हार का सेहरा ई.वी.एम में हुए घोटाले के सिर पर मढ़ दिया था। उन्होंने इस तथाकथित घोटाले में भाजपा का हाथ होने का दावा किया था। तुम्हे तो पता ही है कि उस चुनावी मौसम के लिए ई.वी.एम तैयार करने का जिम्मा चुनाव आयोग के पास था, जैसे कि हमेशा से रहते आया है लेकिन ये चुनाव कुछ अलग थे क्योंकि इस में जनता के साथ धोखा हुआ था!

अब तुम पूछोगी की कैसा धोखा!

मैं बताता हूँ, थोड़ा सब्र तो करो प्रिये।

हुआ कुछ इस प्रकार था कि जब चुनाव आयोग ने चुनाव की तिथि घोषित की, तब मुख्यधारा के मीडिया चैनलों ने अपने अपने हिसाब से आंकड़े जोड़ कर दिखाना शुरू कर दिया। इन सभी चैनलों ने चुनावी राज्यो में या तो कांग्रेस को या आम आदमी पार्टी को जीतता हुआ दिखाया। शायद ऐसे ही किसी चैनल को किसी भाजपा के नेता ने भी देख लिया था। सहमे हुए, यह बात जा कर उस नेता ने श्रीमान अमित शाह जी को बताई। अमित शाह! जिनके नाम से अच्छे अच्छे रणनीतिज्ञ भी रणभूमि छोड़ कर भाग जाते है। जिनकी आँखों की दृष्टि मात्र से मतपत्र पर अपने आप भाजपा के चिन्ह पर निशान लग जाता था (इसी कारणवश मतपत्र बंद कराए गए थे)। कहानियों की माने तो, तो यह भी सुनने में आया है कि अमित शाह जी स्वयं परशुराम जी के रूप है और वो इस धरती में पिछले जन्म की तरह ही एक श्रेणी के लोगों का सफाया करने के लिए अवतरित हुए है। प्रिये! तुम्हे बता दूँ की मोदी जी की २०१४ की जीत में शाह जी से बड़ा योगदान सिर्फ राहुल गांधी जी का था। 

खैर आगे बढ़ते है। अमित शाह जी को ये खबर मिली कि आंकड़ो के तहत वह जीत नहीं रहे है। उन्हें लगने लगा कि कहीं विमुद्रिकारण करने का उनकी सरकार का फैसला उल्टा दाँव तो नहीं पड़ गया। डर से कांप रहे अमित जी ने अपने सिर पर हाथ फेरा, एक टफली मारी और उसके बाद रुमाल से अपने माथे का पसीना पोछा औऱ चेहरा ढक लिया। (इस रुमाल की नीलामी से आने वाले पैसे का इस्तेमाल राम मंदिर के निर्माण में होगा)

यह सब देख, सहमे हुए भाजपा नेता ने साक्षात परशु-रूप शाह जी से पूछा कि उनके मन-मष्तिष्क ने इस दुविधा से निकलने का कोई हल ढूँढा है या नही!? यह प्रश्न सुन कर शाह जी ने अपने चेहरे पर से रुमाल हटाया और इसके बाद जो हुआ वो किसी को नहीं पता। कुछ लोग कहते है कि नेता ने स्वयं परशुराम जी के दर्शन करे और मोक्ष प्राप्ति कर ली, तो कुछ लोग ऐसा भी कहते हैं कि उनकी रौद्र रूपी आँखे देख कर नेता जी खुद ही ई.वी.एम में बदल गए (आगे आपको पता ही है कि क्या हुआ था चुनाव में)।

इसके बाद शाह जी ने मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम ज़ैदी जी से चार पल फोन पर बात की। जिसके उपरांत नसीम जी काँप रहे थे, उनके रौंगटे खड़े हो गए थे।

(मेरे ख्याल से अमित जी ने उन्हें कहा होगा - "आओ कभी हवेली पर"।)

इसके बाद आया चुनावी मौसम। इस महान देश का महापर्व जिस से करोड़ो लोगो की आस्था जुड़ी है। यह वह महापर्व है जिसे हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई (राष्ट्रगान से चुराई हुई पंक्ति) बराबर की आस्था से मनाते है। इस समय हमारे देश में ना कोई हिन्दू होता है, न कोई मुसलमान, ना कोई बाबरी होती है ना कोई राम मंदिर। सब  लोग एक अच्छे और कर्मठ नेता को अपना मत देते है।

चुनाव शुरू हुआ, खत्म हुआ। दिन की गणना और उसके बाद दलों के मिलने का खेल खत्म होते होते भाजपा ने पांच में से चार राज्य जीत लिए थे। केजरीवाल जी ने फिर से अंगूर चखे। 

इसके बाद शुरू हुआ रोचक खेल। मायावती जी ने ई.वी.एम में हुई छेड़खानी का मुद्दा छेड़ दिया, इस पर साथ निभाने आ गए श्री केजरीवाल जी जिन्हें अभियंता होने के तौर पर इ.वी.एम से छेड़खानी करने के दस तरीके पता है (शायद दिल्ली चुनाव में सारे तरीके अपनाए थे)।

जब मैंने यह खभर सुनी, तो मेरा मस्तिष्क फटने लगा, सर के बाल झड़ने लगे, विश्व में कच्चे तेल के दाम बढ़ने लगे, पनामा पेपर की बत्ती बना कर बाबाजी ने सुल्फा मार लिया, बग़दादी ने राम मंदिर को समर्थन दिया, राहुल गांधी ने छोटा भीम देखना बन्द कर दिया(ये आखिरी वाला मैंने झूठ बोला है, गीता बबीता पर हाथ रख कर कसम खाता हूँ)। मुझे यह बयान सुन कर बहुत ठेस पहुँची थी! जिन ई.वी.एम को बनाने में हमें कई दिन लग गए ताकि यह महापर्व संभव हो पाए उस ई.वी.एम को इन्होंने घोटाला करार कर दिया। मैं अपने मन को समझाने की कोशिश की पर मैं तनाव और अवसाद का शिकार था। मैंने कुछ दिनों बाद नौकरी छोड़ दी। उसके बाद मुझे नशे की लत लग गयी, मैं, कैप्टेन अमरिंदर सिंह जी से अपने लिए खास प्रकार का गाँजा मंगवाने लगा लेकिन इससे भी मेरा मन शांत नहीं हुआ। आखिर में, जब मै तुमसे परेशान हो चुका था है प्रिय जिंदगी तो मैंने आत्महत्या करने के बारे में सोचा।

तुमने मुझे उस दिन तो रोक लिया था लेकिन मेरे मन में आत्महत्या का ख्याल घर कर चुका था। मैं सिर्फ एक तरकीब खोज रहा था जिससे मैं एक ही बार में मारा जाऊ। बहरहाल, मैंने ई.वी.एम पर छेड़खानी होने के दावे पर जाँच करने की सोची। मैंने काफी खोजबीन की, कारखाने में पुरानी पहचान थी तो वहाँ जा कर सारी ई.वी.एम दोबारा तैयार होती देखी। जो तैयार थी उन्हें भी जाँचा परंतु कोई घपलेबाज़ी नज़र नहीं आयी। मुझे केजरीवाल जी पर क्रोध आने लगा, तभी मेरे दिमाग में एक सवाल आया कि २ महीने लोगो को बैंक की लंबी कतारों में खड़े रखने के बाद भी लोग भाजपा को अपना मत क्यों देंगे?! इसके दो ही कारण हो सकते थे।

१) या तो वो मोदी जी का बहुत सम्मान करते थे और विमुद्रिकारण को लोगो ने खुशी खुशी अपना लिया देश की भलाई के लिए।

२) या तो मोदी जी ने लोगो के साथ कोई बड़ा खेल खेला है जिसका जनता को पता ही नही।

मैंने सोचा - "जिस देश में लोग मुफ्त के जिओ के पीछे भाग रहे थे, वो देशवाले कैसे अपने से ऊपर उठ कर देशहित का काम कर सकते थे। नहीं! कोई मतलब ही नहीं उठता कि लोग मोदी जी का सम्मान करते है। 

अब मुझे केजरीवाल जी की बात का सत्य दिखने लगा था, कुछ तो गड़बड़ थी परंतु क्या? मैंने दोबारा से सारी घटनाए याद की और तब सारे राज़ खुल गए। मतदान के दौरान हुआ घोटाला हमारे सामने था और हम उसे कभी समझे ही नहीं।

अपनी सफाई में बता दूँ की ई.वी.एम के साथ कोई छेड़खानी नहीं हुई थी, ई.वी.एम आज भी उतनी ही निश्छल है जितनी वह भाजपा राज से पहले हुआ करती थी(सती सावित्री के साथ ई.वी.एम की तुलना होती थी)। इसका मतलब यह नहीं है कि छेड़खानी नहीं हुई, छेड़खानी तो हुई थी परंतु मतदाताओ के मस्तिष्क के साथ। यह मस्तिष्क में हुई छेड़खानी के बारे में अगली बार कभी बताऊँगा।

यह राज़ पता लगाने के बाद मेरा मोदी जी से विश्वास उठ गया। ऐसे कैसे वो जनता के दिमाग से छेड़खानी कर सकते थे। आखिर अभिव्यक्ति की छूट (FoE) भी कोई चीज़ होती है, वो कैसे किसी के दिमाग से छेड़खानी कर उसकी अभिव्यक्ति को एक नया रूप देकर देश के सामने ला सकते है। लानत है दिल्ली के ऐसे नेता पर जो जनता का रुख नही समझ पा रहा इतने सालों से और हर दिन कुछ नया बखेड़ा करता है।

मैं श्री केजरीवाल जी के पास गया परंतु उन्होंने यह कह कर मुझसे मिलने से मना कर दिया कि वो आम आदमी से नही अपितु उस आदमी से मिलते है जो चंदे के लिए ₹२०,००० की थाली खरीद सके। यह सुन कर मुझे बहुत दुख हुआ, नौकरी अब थी नहीं, शादी हो नहीं सकती थी तो मैंने फिर से आत्महत्या की तरकीब खोजनी शुरू करी। तब ही मुझे याद आया कि दिल्ली में नगर निगम चुनाव २३ अप्रैल को होने थे। 

मैंने सोचा यही वो अवसर है जब मैं अपनी जिंदगी को उसके अंत की कगार तक पहुँचा पाऊँगा। चुनाव के दिन, मैं सुबह जल्दी उठा, मुँह हाथ धोया, संकटमोचन केजरीवाल जी का नाम ले कर संडास चला गया (ताकि कोई बुरी घटना ने घटे मेरे साथ), वापस आया, नहाया धोया, नाश्ता करा और मतदान केंद्र पहुँच गया। सब कुछ मेरी योजना के अनुसार हो रहा था। मैं सब से पूछ रहा था कि वो अपना मत किस को देंगे तो जवाब आता भाजपा। मैं भी खुश हो जाता था और उन्हें बताता की मैं आम आदमी पार्टी को वोट दूँगा फिर मैं उन्हें अपना पता भी दे देता (ताकि परिणाम में 'आप' की जीत के पश्चात ये लोग मेरा कत्ल कर सके और इसे राजनैतिक हत्या का रूप दे कर 'आप' वाले मेरी मौत का बदला भाजपा से ले सके)। 

लेकिन ऐ जिंदगी २६ अप्रैल को परिणाम आने के बाद भी मैं जीवित हूँ। तुम समझ चुकी होगी अब तक कि मेरे साथ कुछ नहीं हुआ। मैं विश्वास से कह सकता हूँ कि मैंने झाड़ू का बटन दबाया था पर मत भाजपा को चले गया।

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